इस पन आकर मुझे
इलहाम हुआ कि
हृदय भी एक हाथ था मेरा
अरसे से मेरी पीठ से बँधा
फ़िजूल बंधनों से नधा
हृदय हां, अब भी
एक हाथ है मेरा
मुझ आँख के अंधे की
लाठी
इस अंधेर दुनिया के भटकन में
और देखो, वह
बुला रहा है मुझे
और तुम्हें भी
उसकी आवाज़ गौ़र से सुनो
इस तन-तंबूरे में
कह रहा है कोई
सच्ची बात
हित की बात
ओह, सुनी तुमने
पहले कभी
इतनी भली बात !
उसकी टूटन
और नहीं सहूंगा
कह रहा है कोई
सच्ची बात
हित की बात
ओह, सुनी तुमने
पहले कभी
इतनी भली बात !
उसकी टूटन
और नहीं सहूंगा
अक्षर-अक्षर
हृदय के कहन का
लोक लूंगा !
इस राह चलते
मन की डींगे
खूब सुनता आया हूं, अब
अपने हृदय को भी
हाँक लूंगा
इस यात्रा मेंहृदय के कहन का
लोक लूंगा !
इस राह चलते
मन की डींगे
खूब सुनता आया हूं, अब
अपने हृदय को भी
हाँक लूंगा
हां,..हृदय को भी
अपने साथ लूंगा।
6 टिप्पणियाँ:
बहुत सुन्दर कविता...
सुन्दर कविता...
nice
स्वागत है |
ACHCHHEE KAVITA KE LIYE AAPKO BADHAAEE AUR SHUBH KAMNA . MERA EK
SHER SUNIYE -
SABKEE BAATEN SUNNE WAALE
APNE DIL KEE BAAT KABHEE SUN
TEREE KHAIR MNAANE WAALAA
TERA APNA HAI DIL PYAARE
धन्यवाद आदरणीय प्राण साहब |
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